महामारी के बाद भारत में कमज़ोर समूहों के बच्चे मानसिक कल्याण के लिए निपटने की पद्धति प्रदर्शित करते हैं: टीआरएसी 2022 रिपोर्ट
विभिन्न देशों के द्वीतीयक साहित्य की समीक्षा पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) की शुरूआत और बिगड़ने की स्थिति दर्शाते हैं
टीआरएसी 2022 सभी बच्चों के लिए मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा, मज़बूती और इससे निपटने के लिए परिवारों, समुदायों, स्कूलों और नागरिक समाज और सरकार से अपील करती है
नई दिल्ली, 24 जनवरी 2023: कोविड-19 के बीच सारा ध्यान बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक कल्याण पर केंद्रित होने के साथ, बाल रक्षा भारत (दुनियाभर में सेव द चिल्ड्रन नाम से परिचित) ने अपने प्रमुख रिपोर्ट टीआरएसी 2022- द राइट्स एंड एजेंसी ऑफ चिल्ड्रन के पहले संस्करण को लॉन्च किया है। चार यूएनसीआरसी (बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन) अधिकारों- उत्तरजीविता, विकास, संरक्षण, और सहभागिता, पर केंद्रित बच्चों के अधिकारों की प्राप्ति पर बच्चों की स्थिति और दृष्टिकोण पर इस रिपोर्ट का फोकस है। एक प्रमुख विषय पर वार्षिक फोकस होने के संदर्भ में इस साल टीआरएसी रिपोर्ट कोविड 19 के बीच ‘बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक कल्याण’ पर ध्यान केंद्रित करती है।
इस रिपोर्ट को श्री राकेश रंजन, अतिरिक्त सचिव एवं मिशन डायरेक्टर, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम, नीति आयोग, के द्वारा अन्य विशेषज्ञों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों, जैसे प्रो. ए. के. शिवकुमार, विकास अर्थशास्त्री एवं नीति विश्लेषक, सुश्री सोलेडाड हेरेरो, बाल संरक्षण प्रमुख, यूनिसेफ, डॉ. गौरी दीवान, निदेशक, बाल विकास समूह, संगठ और दीपक कपूर, अध्यक्ष, बाल रक्षा भारत की उपस्थिति में लॉन्च किया गया।
कोविड-19 के बीच 4200 बच्चों के साथ मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक कल्याण पर किया गया प्राथमिक अध्ययन, एक ग्लोबल ब्रीफ-सीओपीई स्टडी टूल (कोपिंग एक्सपीरियंस टू प्रोब्लम एक्सपीरियंस्ड) का उपयोग करते हुए पिछले दो सालों में महामारी के कारण पैदा हुई परेशानियों का सामना करने के लिए बच्चों द्वारा इस्तेमाल की गई निपटने की रणनीति को प्रमुखता से सामने रखता है। भारत के पांच राज्यों ( असम, बिहार, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश) के 4200 बच्चों के साथ किए गए परामर्श और विभिन्न देशों के द्वीतीयक साहित्यों की समीक्षा के आधार पर इस खंड के निष्कर्षों तक पहुँचा गया है। यह अध्ययन 14 विभिन्न निपटने की रणनीति से संबंधित है (जिन्हें आगे तीन और श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है – समस्या केंद्रित, भावना केंद्रित, और निपटने से परेहज) और महामारी के दौरान बच्चों में निपटने संबंधी पैटर्न का मूल्यांकन करता है।
इस अवधि के दौरान बच्चो के अधिकारों का मूल्यांकन करने वाली इस रिपोर्ट के सबसे पहले संस्करण को प्रस्तुत करते हुए राकेश रंजन ने कहा, “संवहनीय विकास के लिए 2030 का एजेंडा दुनिया के बच्चों के लिए एक उज्वल भविष्य के लिए सबसे ऊंची आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है और एक ऐसी दुनिया का निर्माण करने के लिए ब्लूप्रिंट का काम करता है जिसकी बच्चों को आवश्यकता है और जिसकी वे मांग कर रहे हैं। सरकार द्वारा चलाए जाने वाले ऐसे कार्यक्रमों की सफलता को संभव बनाने के लिए बाल अधिकारों की प्रगति पर डाटा और साक्ष्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। मैं सेव द चिल्ड्रन का अभिनंदन करता हूँ टीआरएसी रिपोर्ट लाने के लिए जो न सिर्फ़ बच्चों से संबंधित समस्याओं को उनकी अपनी आवाज़ों के माध्यम से प्रमुखता से प्रस्तुत करेगी, बल्कि भारत में बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किए गए प्रयासों का भी उल्लेख करती।”
डॉ. शेखर सेषाद्री (पूर्व निदेशक निमहंस (NIMHANS) और सलाहकार संवाद (SAMVAD)) ने आगे जोड़ते हुए कहा, “बाल मानसिक स्वास्थ्य आपको मनोविज्ञान चिकित्सा की किताबों में नहीं बल्कि समुदाय में, सड़कों पर, घरों और परिवारों में, बच्चों की देखभाल करने वाली संस्थाओं और स्कूलों में, किताबों, संगीत और रोज़मर्रा के जीवन के थिएटर में मिलेगा।”
प्राथमिक डाटा संकलन से प्रमुख निष्कर्ष प्रदर्शित करता है कि जिन बच्चों का सर्वेक्षण किया गया उसमें दो बच्चों में से एक बच्चे ने निपटने से परहेज का उपयोग किया (52.7%), अक्सर/ज़्यादातर समस्या केंद्रित निपटने (51.0%) और उसके बाद भावना केंद्रित निपटने (43.3%) की कार्यपद्धति का उपयोग किया। सबसे सामान्य रूप से इस्तेमाल की गई रणनीति थी धार्मिक तौर पर निपटने की रणनीति, जो शहरी इलाकों में रहनेवाले किशोरवयीन बच्चों की तुलना में ग्रामीण भागों के किशोरवीयन बच्चों द्वारा अपनाई गई।
विभिन्न राज्यों में द्वितीयक साहित्य की समीक्षा द्वारा प्रमुखता से दर्शाए गए ट्रेंड्स विशेष रूप से बताते हैं:
बच्चों में नए मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताएं और पहले से मौजूद मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियों का ज़्यादा बिगड़ना, सुविधाहीन समूहों के बच्चों पर कोविड-19 का विषम प्रभाव, हेल्थकेयर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर अत्यधिक बोझ के कारण मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की उपेक्षा, इत्यादि।
दीपक कपूर, अध्यक्ष, बाल रक्षा भारत, ने सभी हितधारकों को एक साथ आकर यह रिपोर्ट तैयार करने के लिए धन्यवाद दिया और कहा, “महामारी के बीच भारत के बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए भारत सरकार और सभी महत्वपूर्ण विकास संस्थाओं द्वारा किए गए सुसंगत और सफल प्रयासों की इस अवसर पर हम सराहना करते हैं। निष्कर्षों के साथ टीआरएसी रिपोर्ट का यह पहला अंक प्रकाशित करते हुए बाल रक्षा भारत सम्मानित महसूस कर रही है और हमें पूरा विश्वास है कि इस रिपोर्ट से उचित नीतियों और कार्यक्रमों के निर्धारण, मानसिक कल्याण की चर्चा गहरी होने में और भारत के सभी बच्चों के लिए एक सुरक्षित, सम्मानजनक और खुशनुमा भविष्य सुनिश्चित करने के लिए कार्रवाई करने में सहायता मिलेगी।”
यह रिपोर्ट कोविड-19 के दौरान और महामारी के बाद बच्चों के मानसिक और मनोसामाजिक कल्याण को संबोधित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए कार्यक्रमों की सराहना करती है। इसमें शामिल है महिला एवं वाल विकास मंत्रालय के कार्यक्रम जिसके अंतर्गत बच्चों के लिए टेलि-काउंसलिंग हेल्पलाइन संवेदना –SAMVEDNA (सेसिंटाइज़िंग एक्शन ऑन मेंटल हेल्थ वल्नरेबिलिटी थ्रू इमोशनल डेवलपमेंट एंड नेसेसरी एक्सेप्टेंस यानी भावनात्मक विकास और आवश्यक स्वीकार्यता के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य कमजोरी पर कृति का संवेदीकरण) शुरु की गई थी और शिक्षा मंत्रालय द्वारा मनोदर्पण –MANODARPAN नामक वेब पोर्टल की शुरूआत की गई जो छात्रों के लिए एक राष्ट्रीय टोल फ्री हेल्पलाइन सहित मनोसामाजिक सहायता प्रदान करने के लिए विभिन्न गतिविधियों को कवर करता है।
इस रिपोर्ट में बाल अधिकारों के चार स्तंभों के हिसाब से 15 राज्यों से संकलित किए गए डाटा से निकाले गए निष्कर्ष शामिल हैं और इसके साथ ही बच्चों के एजेंडा पर बजट, कार्यक्रम और पॉलिसी ट्रेंड्स पर द्वितीयक डाटा विश्लेषण भी उपलब्ध कराया गया है।
विवरण ढूंढ़ने और कॉल टू एक्शन के लिए अनुलग्नक संलग्न है
बाल रक्षा भारत के बारे में
बाल रक्षा भारत भारत के 18 राज्यों में बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, संरक्षण और मानवीय/डीआरआर (आपदा जोखिम कमी) आवश्यकताओं के लिए कार्य करती है, विशेष रूप से उन बच्चों के लिए जो सबसे अधिक वंचित और अधिकारहीन हैं। ज़्यादा जानकारी के लिए www.savethechildren.in इस वेबसाइट पर जाएं।