सेव द चिल्ड्रन और सीबीजीए ने ‘‘भारत में प्रारंभिक बाल शिक्षा के सार्वभौमीकरण की लागत’’ के प्रमाण जारी किए
देश में गुणवत्तायुक्त ईसीई सेवाएं प्रदान करने के लिए अनुमानित लागत पर यह अपनी तरह का पहला शोध प्रमाण है।
सर्वाधिक आवश्यक नीतिगत कार्रवाई के रूप में सकल बजटीय सहयोग (जीबीएस) में भारी वृद्धि की सिफ़ारिश की।
नई दिल्ली, 21 सितंबर, 2022 – बाल रक्षा भारत (सेव द चिल्ड्रन इंडिया) – बाल रक्षा भारत द्वारा स्वीकृत एवं सेंटर फॉर बजट एवं गवर्नेंस अकाउंटेबिलिटी (सीबीजीए) द्वारा किए गए अध्ययन, ‘‘भारत में शुरुआती बाल शिक्षा के सार्वभौमीकरण की लागत’’ का आज अनावरण किया गया। इसमें भारत में शुरुआती बाल शिक्षा पर खर्च होने वाली राशि और फंड के फ्लो की गणना करने के लिए बजट का विश्लेषण किया गया है। यह अध्ययन भारत में 3 से 6 साल के आयु समूह के बच्चों के लिए ईसीई सेवाओं के सार्वभौमीकरण की लागत का अनुमान प्रस्तुत करने का पहला प्रयास है।
इस रिपोर्ट का अनावरण वृंदा सरूप,पूर्व सचिव,शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, की मौजूदगी में किया गया।
भारत में बाल रक्षा भारत (सेव द चिल्ड्रन इंडिया) के सीईओ, सुदर्शन सुचि ने कहा, ‘‘नेशनल एजुकेशन पॉलिसी“ (एनईपी) (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) 2020, साल 2030 तक शुरुआती बाल देखभाल और शिक्षा के सार्वभौमीकरण करने के एसडीजी 4.2 के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है। यह लक्ष्य प्राप्त करने के लिए भारी वित्तीय निवेश जरूरी है। यद्यपि एनईपी 2020 में ईसीसीई पर ‘फाईनेंसिंग के लिए एक मुख्य दीर्घकालिक क्षेत्र’ के रूप में बल दिया गया है, लेकिन ईसीसीई के सार्वभौमीकरण के लिए जरूरी फंड की मात्रा को परिभाषित किए जाने की जरूरत है। यह रिपोर्ट हमारे द्वारा किए गए एक पूर्व प्रयास, ‘‘द राईट स्टार्ट’’ 2018 स्टडी के आधार पर बनाई गई है, जिसमें 3 से 6 साल के सभी बच्चों को गुणवत्तायुक्त ईसीई सेवाएं प्रदान करने के लिए अनुमानित वित्तीय संसाधनों के जरूरी प्रमाण दिए गए थे, और हम भारत में 3 से 6 साल के बच्चों के जीवन में दीर्घकालिक परिवर्तन लाने के लिए प्रमाण-आधारित नीति निर्माण में सरकार का सहयोग करने के लिए आशान्वित हैं।’’
सुब्रत दास, एग्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर, सीबीजीए ने कहा, ‘‘देश में ईसीई सेवाओं की विषम गुणवत्ता और कवरेज के कारण यह जरूरी है कि एक प्रतिक्रियाशील ईसीई मॉडल का विकास किया जाए, जो भारत सरकार एवं राज्य सरकारों को 3 से 6 साल के सभी बच्चों को समान सेवाएं प्रदान करने में मदद कर सके। शुरुआती गुणवत्तायुक्त लर्निंग प्रदान करने में संलग्न लागत के सटीक अनुमान से प्रभावशाली योजना बनाने, संसाधनों का बुद्धिमत्तापूर्ण इस्तेमाल करने, और निर्णय लेने की बेहतर क्षमता का विकास करने में मिल सकती है। इस संदर्भ में सीबीजीए का उद्देश्य विशेष मान्यताओं के आधार पर उच्च गुणवत्ता की ईसीई प्रणाली के क्रियान्वयन के लिए लागत का एक प्रकल्पित अनुमान विकसित करना है। इससे सरकार द्वारा बच्चों को शुरुआती गुणवत्तायुक्त अध्ययन व देखभाल प्रदान करने में लगने वाले निवेश के लिए कुल संसाधनों के संभावित परिमाण का अनुमान लगाने में मदद मिलेगी।’’
शुरुआती बाल शिक्षा व देखभाल एक स्वस्थ व समृद्ध समाज के लिए बहुत जरूरी है। बच्चों को उम्र के मुताबिक देखभाल और शिक्षा प्रदान करना राज्य का दायित्व है। भारत इसे नीति में मान्यता देता है और ईसीसीई पर केंद्रित अनेक अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में एक हस्ताक्षरकर्ता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (नेशनल एजुकेशन पॉलिसी) (एनईपी 2020) में साल 2030 तक शुरुआती बाल शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लिए एसडीजी 4.2 के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई है। यह लक्ष्य प्राप्त करने के लिए भारी वित्तीय निवेश करने की जरूरत है। यद्यपि हमारे पास ईसीई के लिए एक मजबूत नीतिगत परिदृश्य है, लेकिन उसके लिए हमारे पास पर्याप्त वित्त उपलब्ध नहीं है। लेकिन ईसीई का महत्व इतना ज्यादा है, कि यह अनिवार्य हो गया है।
इस रिपोर्ट के मुख्य परिणाम निम्नलिखित हैं:-
1. एक सुदृढ़ शुरुआती बचपन का गठन करने वाले तत्व आपस में जुड़े हुए हैं।
2. ईसीई प्रावधान के तीन मॉडलों, यानि एनजीओ, सरकार और निजी इकाईयों का विश्लेषण ईसीई कार्यक्रमों की विविध संरचना और सेवाओं की पुष्टि करता है।
3. इस अध्ययन में विश्लेषण से प्रदर्शित होता है कि आईसीडीएस रिपोर्ट्स के तहत एडब्लूसी सभी चयनित ईसीई मॉडलों में सबसे कम संचालन लागत और सबसे कम प्रति बच्चा लागत प्रस्तुत करता है।
4. भारत में ईसीई के लिए पब्लिक प्रोविज़निंग द्वारा 3 से 6 साल के लगभग 32 प्रतिशत बच्चों को सेवाएं मिलती हैं, और विश्लेषण से प्रदर्शित होता है कि प्रति वर्ष प्रति बालक लगभग 8,297 रु. का निवेश किया जाता है। यह खर्च विभिन्न राज्यों में अलग-अलग होकर मेघालय में 3,792 रु. से लेकर अरुणाचल प्रदेश में 34,758 रु. के बीच है।
5. गुणवत्तायुक्त ईसीई सेवाओं के लिए प्रति वर्ष प्रति बालक औसत अनुमानित लागत 32,531 रु. (व्यवहारिक लागत)- 56327 रु. (सर्वाधिक अनुकूल लागत) के बीच होती है। वास्तविक लागत (इस सीमा में) क्रियान्वयन के लिए sअपनाए गए मॉडल पर निर्भर होगी।
6. हर साल सार्वभौम ईसीई सेवाओं के लिए मुख्य कार्यक्रमानुसार प्रशासनिक एवं प्रबंधन की लागत (मॉनिटरिंग और सुपरविज़न, गुणवत्ता सुधार और संस्थान निर्माण की लागत) 367 करोड़ रु. है।
7. इस अध्ययन का निष्कर्ष निकला है कि 3 से 6 साल के सभी बच्चों को सार्वभौम गुणवत्तायुक्त ईसीई सेवाएं प्रदान करने के लिए जीडीपी के 1.5 प्रतिशत से 2.2 प्रतिशत बजट का आवंटन किया जाना चाहिए।
भारत में ईसीई के सार्वभौमीकरण के लिए सुझाव
1. 3 से 6 साल के बच्चों को निशुल्क अनिवार्य ईसीई सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त सरकारी निवेश की जरूरत है।
2. फंड के फ्लो और यूटिलाईज़ेशन पर निगरानी रखने के लिए एक मजबूत प्रणाली।
3. ईसीई का क्षेत्रीय विश्लेषण किया जाना समय की मांग है।
4. शासन के हर स्तर पर भौतिक और वित्तीय डेटा की अलग-अलग उपलब्धता बनाने की जरूरत।
5. गुणवत्तायुक्त ईसीई सुनिश्चित करने के लिए व्यवसायिक रूप से प्रशिक्षित नियमित कैडर के कार्यबल की जरूरत।
6. प्रशिक्षण एवं मॉनिटरिंग में निवेश को प्राथमिकता दिया जाना।
7. केंद्रीय स्तर पर चयनित तत्वों के लिए मानकीकृत वित्तीय नियम बनाए जाने की जरूरत है।
8. ईसीई हस्तक्षेपों से जुड़े तत्वों की यूनिट लागत में संशोधन कर उसे बढ़ाए जाने की जरूरत है।
9. ईसीई संस्थानों का क्षमता निर्माण किए जाने व उसे मजबूत किए जाने की जरूरत है।
10.ईसीई कार्यक्रमों को नियमाधीन किए जाने की जरूरत है।
11.ईसीई कार्यक्रमों के लिए आईसीटी एकीकरण जरूरी है।
गुणवत्तायुक्त ईसीई की पब्लिक प्रोविज़निंग में समानता लाने की शक्ति है। निर्धारित समयसीमा में एसडीजी लक्ष्य 4.2 को प्राप्त करने के लिए गुणवत्तायुक्त ईसीसीई कार्यक्रम के लिए पर्याप्त फाईनेंसिंग एक आवश्यक निवेश है, जो भारत में होना चाहिए। इस रिपोर्ट में विश्लेषण से इस सेक्टर में संसाधनों की जरूरत और मौजूदा आवंटन में अंतर साफ हो जाता है। इसलिए सरकार के अंदर और बाहर वैकल्पिक स्रोतों से सतत वित्तीय कार्ययोजनाओं की जरूरत है।
निर्विवाद तथ्य है कि एक सार्वभौम ईसीई कार्यक्रम के लिए जीडीपी के 1.5 प्रतिशत तक पहुँचने के लिए सबसे पहले सकल बजटीय सहयोग (जीबीएस) में भारी वृद्धि करते हुए नीति बनाकर कार्रवाई किए जाने की जरूरत है। राज्य व केंद्र सरकार के सीमित संसाधनों को देखते हुए जीबीएस में होने वाली इस वृद्धि को देश के टैक्स राजस्व में वृद्धि करके फंड दिए जाने की जरूरत है। इसके लिए संभावित दीर्घकालिक समाधान प्रत्यक्ष कर से जीडीपी14 अनुपात में वृद्धि या ऋण द्वारा डेफिसिट फाईनेंसिंग हैं। हालाँकि, संसाधनों के आवंटन और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की प्रक्रिया तत्काल शुरू की जानी चाहिए।
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