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सेव द चिल्ड्रन विंग्स 2022 की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि शहरी झुग्गियों में अधिकांश किशोरी लड़कियां महामारी के दौरान लड़कों की तुलना में मूलभूत स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाओं से वंचित रहीं

02/03/22
Press Coverage
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सेव द चिल्ड्रन विंग्स 2022 की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि शहरी झुग्गियों में अधिकांश किशोरी लड़कियां महामारी के दौरान लड़कों की तुलना में मूलभूत स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाओं से वंचित रहीं

    • 68 प्रतिशत किशोरी लड़कियों को स्वास्थ्य व पोषण की सेवाएं प्राप्त करने में चुनौतियां आईं।
    • 67 प्रतिशत लड़कियां लॉकडाऊन के दौरान ऑनलाईन क्लासेस में उपस्थित नहीं रहीं।
    • 56 प्रतिशत लड़कियों को लॉकडाऊन के दौरान आउटडोर खेल एवं रिक्रिएशन के लिए समय नहीं मिला।
    • सर्वे में शामिल आधी से ज्यादा माताओं ने स्वीकार किया कि कोविड-19 के कारण लड़कों के मुकाबले लड़कियों की शादी जल्दी किए जाने की संभावना ज्यादा है।
    • बालिकाओं के लिए मल्टी-स्टेक होल्डर सहयोग एवं निवेश बढ़ाए जाने का अह्वान।

2 मार्च, 2022, नई दिल्लीः सेव द चिल्ड्रन, इंडिया (बाल रक्षा भारत के नाम से मशहूर) ने एक शोध आधारित अध्ययन में शहरी झुग्गियों की आबादी पर केंद्रित रहते हुए लड़कियों पर पड़ने वाले कोविड-19 के गैरअनुपातिक प्रभाव पर रोशनी डाली। स्पॉटलाईट ऑन एडोलेसेंट गर्ल्स एमिड कोविड-19 की थीम के साथ वर्ल्ड ऑफ इंडियाज़ गर्ल्स – विंग्स 2022 की रिपोर्ट आज लॉन्च की गई। इस रिपोर्ट में भारत में पहली बार महामारी के कारण लगे लॉकडाऊन के दौरान और उसके बाद लड़कियों की स्थिति का खुलासा किया गया, जो उसके बाद कोविड-19 वायरस की अलग-अलग लहरों और उसके म्यूटेट होने के कारण और ज्यादा खराब होती चली गई।

इस अध्ययन में उनकी असुरक्षा के संपूर्ण संदर्भ में होने वाले परिवर्तनों पर केंद्रित रहते हुए स्वास्थ्य, शिक्षा, एवं खेल व मनोरंजन के अवसरों में आई रुकावटों का खुलासा किया गया। इसमें स्वास्थ्य व पोषण की बढ़ती असुरक्षाओं, पढ़ाई के अवसरों में आई अचानक गिरावट, जल्दी शादी करने का दबाव, खेल व मनोरंजन की सीमित सुविधाओं के साथ परिवारों द्वारा अपनाई गई ढलने की प्रक्रियाओं को समझना शामिल है।

इस रिपोर्ट के बारे में श्री सुदर्शन सुची, सीईओ, सेव द चिल्ड्रन ने कहा, ‘‘आजादी के 100 साल पूरे होने पर भी भारत तब तक अपनी पूरी क्षमता हासिल नहीं कर सकता, जब तक हम आज 100 प्रतिशत बच्चों को सुरक्षित न कर दें। विंग्स 2022 रिपोर्ट हमारे देश द्वारा सभी बच्चों की सुरक्षा में निवेश न करने के कारण उत्पन्न जोखिमों को सामने लाने का हमारा प्रयास है। आजादी के 75 साल पूरे होने के बाद भी भारत में बच्चों की आधाी आबादी को उनके मूलभूत अधिकार समान रूप से नहीं मिल पाते, जो यहां की दयनीय स्थिति को प्रदर्शित करता है। इस रिपोर्ट के साथ हम समाधान का हिस्सा बनने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं। विभिन्न उपायों के द्वारा यह रिपोर्ट हम सभी को भविष्य का एक मार्ग प्रदान करती है। ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हम सबका दायित्व है कि हम प्रथम स्टेकहोल्डर्स, यानि बच्चों की आवाज को शामिल कर उनके लिए योजना बनाने के दृष्टिकोण की बजाय उनके साथ योजना बनाने का दृष्टिकोण अपनाएं। बच्चे अब और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते!’’

इस अध्ययन में किशोरी बच्चियों की आवाज को भी समाहित किया गया है, ताकि उनके जीवन में हुए परिवर्तनों की व्याख्या की जा सके। ये परिणाम एक उचित प्रतिक्रिया का प्रारूप बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, ताकि सभी स्टेकहोल्डर्स के लिए परामर्श तैयार कर बेहतर समाज बनाया जा सके। इससे नीति निर्माता एवं क्रियान्वयन करने वाले बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा करने के लिए दीर्घकालिक सामरिक उपाय करने में समर्थ बनेंगे।

प्रभावशाली और विस्तृत परिवर्तन लाने के उद्देश्य से यह अध्ययन चार राज्यों- दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार, और तेलंगाना में किया गया, जिन्होंने चार भौगोलिक क्षेत्रों (पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण) का प्रतिनिधित्व किया। रिपोर्ट के सुझाव निम्नलिखित हैं:

        • लड़कियों के लिए निवेश बढ़ानाः कोविड-19 महामारी और इसके प्रभाव लड़कियों की जिंदगी को प्रभावित करते रहेंगे, यह देखते हुए बालिकाओं के लिए निवेश बढ़ाए जाने और यह सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है कि स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, व सुरक्षा सेवाएं आसानी से उपलब्ध हों और बालिकाओं पर विशेष केंद्रण के साथ समावेशी हों।
        • मल्टी-स्टेकहोल्डर्स के साथ संलग्नता का निर्माणः सिविल सोसायटी संगठनों, निजी क्षेत्र, शिक्षा जगत, मीडिया, समुदायों, नागरिकों, एवं लड़कियों द्वारा समन्वित व सामंजस्यपूर्ण प्रयासों की जरूरत है, ताकि वो मिलकर बालिकाओं के अधिकारों के उल्लंघन की समस्या को संबोधित कर सकें।
        • बालिकाओं की आवाज सुनें: यह सुनिश्चित किया जाना महत्वपूर्ण है कि बालिकाओं के साथ संवाद व वार्ता में उनका अनुभव व कोविड-19 का प्रभाव शामिल हो, ताकि बालिकाओं के लिए सेवाओं की पहुंच में सुधार के लिए रिस्पॉन्स योजनाओं का विकास हो सके।
        • बालिकाओं की एजेंसी का गठनः बच्चों के लिए सुरक्षा प्रणाली का संचालन और बेहतर सेवाओं के लिए सरकार से सिफ़ारिश कर; बच्चों के लिए अवसरों का निर्माण और युवाओं के नेतृत्व में बाल अधिकार की समस्याओं जैसे बाल विवाह आदि के लिए जवाबदेही की वकालत, और बाल अधिकारों के बारे में जानकारी प्रसार के लिए बाल समूहों, युवा समूहों एवं बच्चों के अन्य फोरम का इस्तेमाल करना और समुदायों में बच्चों के लिए गतिविधियों का नेतृत्व करना।
        • डिलीवरी सिस्टम को मजबूत करनाः डिलीवरी की प्रक्रिया को मजबूत किए जाने की जरूरत है ताकि लड़कियों के लिए कार्यक्रमों का प्रभावशाली क्रियान्वयन हो सके।
        • बालिकाओं के माता-पिता व अभिभावकों को बाल अधिकारों को बढ़ावा देने और बच्चों, खासकर बालिकाओं के हितों को प्रोत्साहित करने के लिए फाईनेंस, क्षमता-निर्माण, प्रोत्साहन देकर सक्रियता से काम करने की प्रेरणा देते हुए संस्थानों, संरचनाओं और फ्रंटलाईन कर्मियों को अतिरिक्त सपोर्ट प्रदान करना।
        • वार्ड/ग्राम/ग्राम पंचायत के स्तर पर गठित विभिन्न समितियों जैसे सीपीसी एवं वीएचएसएनसी आदि की संलग्नता सुनिश्चित करने के लिए समुदाय आधारित मॉनिटरिंग सिस्टम का विकास व सुधार।
        • बालिकाओं के लिए प्रमाणों का निर्माणः बालिकाओं पर कोविड-19 के प्रभाव के प्रमाणों के निर्माण में निवेश। कोविड-19 के संदर्भ में लड़कियों के डेटा एकत्र करने के प्रयासों को स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा व बाल सुरक्षा सहित महत्वपूर्ण बाल अधिकारों की ओर केंद्रित होना चाहिए।

दिल्ली में प्रभाव:

दिल्ली में सबसे बड़ा प्रभाव बालिकाओं के न्यूट्रिशनल इंडैक्स पर पड़ा, जिसमें महवारी के दौरान स्वच्छता और शिक्षा की निरंतरता शामिल हैं:

        • किशोरियों के स्वास्थ्य, पोषण व सेहत पर बुरा असर पड़ा।
        • पाँच में से चार परिवार (79 प्रतिशत) भोजन की अपर्याप्तता से पीड़ित रहे।
        • तीन में से दो माताएं (63 प्रतिशत) ने बताया कि उनकी किशोरी बच्चियों को लॉकडाऊन की अवधि में सैनिटरी नैपकिन मिलने में मुश्किलें आईं।
        • 10 में से नौ किशोरी लड़कियों (93 प्रतिशत) ने बताया कि उन्हें कोई स्वास्थ्य व पोषण सेवा नहीं मिल पाई।
        • दो किशोरी लड़कियों में से एक (45 प्रतिशत) को महामारी के दौरान यौन व प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों (एसआरएचआर) की जानकारी नहीं मिल पाई।
        • स्कूलों के बंद होने से अध्ययन की निरंतरता में बड़ी बाधा आई।
        • पढ़ाई की सुविधाएं बंद हो जाने से 320 मिलियन से ज्यादा बच्चों की जिंदगी बाधित हुई, जिनमें से अधिकांश प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर नामांकित थे (86प्रतिशत)।
        • 10 किशोरी लड़कियों में से सात (71 प्रतिशत लड़कियां) लॉकडाऊन के दौरान ऑनलाईन कक्षा में उपस्थित रहीं।
        • 10 माताओं में से नौ (89 प्रतिशत) ने साफ बताया कि महामारी ने उनकी बेटी की पढ़ाई पर बहुत बुरा असर डाला।
        • माताओं द्वारा बताए अनुसार महामारी के दौरान स्कूल बंद हो जाने के बाद पाँच में से एक लड़की (20 प्रतिशत) को स्कूल के स्टाफ ने संपर्क नहीं किया।

सेव द चिल्ड्रन, इंडिया द्वारा तैयार कंस्ट्रक्टिव दिशानिर्देशों को आंगनवाडी केंद्रों और स्कूलों में सुरक्षित वापसी के लिए कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के राज्य शिक्षा विभागों के साथ साझा किया गया। साथ ही क्लास के टाईम टेबल, सत्रों के सत्र, सुरक्षा विधियों (यानि हर क्लास के बाद कक्षाओं को सैनिटाईज़ करना, पर्सनल प्रोटेक्टिव ईक्विपमेंट पीपीई किट्स उपलब्ध कराना) के पालन और यदि कोविड-19 के मामले फिर से बढ़ें, तो सावधानी के उपायों के साथ सुरक्षित वापसी के प्रोटोकॉल भी साझा किए गए।
2014 में पहली विंग्स रिपोर्ट ने आर्थिक वृद्धि व सामाजिक विकास होने के बावजूद लड़कियों व महिलाओं की असमान चुनौतियों पर रोशनी डाली गई। विंग्स 2018 में निहित लैंगिक रूढ़ियों और सार्वजनिक स्थानों में लड़कियों की सुरक्षा पर उनके प्रभाव तथा उनकी क्षमता का विकास करने में इसके कारण आने वाली बाधाओं का आंकलन किया गया।

About Bal Raksha Bharat

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Gaurav Sharma
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